केजरीवाल सरकार पर निशाना साधते हुए गुरूवार को दिल्ली भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी ने कहा है कि केजरीवाल सरकार की लापरवाही और मिलीभगत के कारण आने वाले नगर निगम चुनावों के ठीक बाद दिल्ली में बिजली की दरों में भारी वृद्धि होगी।
प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि केजरीवाल सरकार अपने अहंकार के कारण सदस्य नियुक्ति नियमों का पालन नहीं कर रही जिसके फलस्वरूप दिल्ली विद्युत विनियामक आयोग (डीईआरसी) में पूरे सदस्य नहीं है।
दिल्ली विद्युत विनियामक आयोग में अध्यक्ष की नियुक्ति में नियमों का पालन नहीं किये जाने के कारण यह न्यायपालिका के विचाराधीन है किन्तु केजरीवाल सरकार ने बिजली वितरण कंपनियों में निजी भागीदारों के साथ मिलीभगत करके सदस्य (वित्त) की नियुक्ति को भी लटका रखा है।
इसके परिणाम स्वरूप एकल सदस्यीय डी.ई.आर.सी. ने निजी कंपनियों के साथ मिलीभगत करके बिना जनसुनवाई की प्रक्रिया का अनुपालन किये ही बिजली की दरों के पुनरीक्षण के प्रारूप को अंतिम रूप दे दिया है। ऐसा करके डी.ई.आर.सी. के एकल तकनीकी सदस्य श्री बी.पी. सिंह ने विद्युत अधिनियम की धारा 61 और 86 का उल्लंघन किया है जिसमें यह सुनिश्चित किया गया है कि उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा की जायेगी और बहुवर्षीय टैरिफ दरें तय करने की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाये रखा जायेगा।
दिल्ली भाजपा अध्यक्ष ने कहा है कि अरविंद केजरीवाल सरकार की पहले से ही निजी कंपनियों टाटा और रिलायंस के साथ मिलीभगत है और नगर निगम चुनावों के बाद ही अप्रैल के मध्य में बिजली की दरें बढ़ जायेंगी। डीईआरसी की सिफारिशें केजरीवाल सरकार के संज्ञान में हैं किन्तु वह नगर निगम चुनाव होने तक दिल्ली विधानसभा में इसे अनुमोदन के लिये नहीं रखेगी।
मनोज तिवारी ने कहा है कि हालांकि हम जानते हैं कि केजरीवाल सरकार की मिलीभगत के कारण ही डी.ई.आर.सी. ने बिना जनसुनवाई के नई बहुवर्षीय टैरिफ तैयार हुआ है फिर भी दिल्ली की जनता के हित में हम मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से विद्युत अधिनियम की धारा 108 के अधीन डी.ई.आर.सी. के इस प्रारूप को नामंजूर करने या दिल्ली विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर अधिवेशन में प्रारूप को प्रस्तुत करने और उसे नामंजूर करने का आग्रह करते हैं।
प्रदेश अध्यक्ष ने कहा है कि अरविंद केजरीवाल सरकार सभी बिजली उपभोक्ताओं के लिये बिजली की दरों को कम करने का वादा करके सत्ता में आई थी। पिछले दो वर्षों में दिल्ली सरकार ने कुछ नहीं किया है। केजरीवाल सरकार रिलायंस और टाटा कंपनियों के साथ तीनों वितरण कंपनियों में 49 प्रतिशत की भागीदार है किन्तु केजरीवाल सरकार ने अपने निजी भागीदार कंपनियों द्वारा की जा रही वित्तीय गड़बड़ियों को रोकने के लिये कोई कदम नहीं उठाया है।
केजरीवाल सरकार ने मध्यम वर्ग के उपभोक्ताओं के हितों की अनदेखी करके छोटे उपभोक्ताओं को सरकारी खजाने से सब्सिडी देकर एक वोट बैंक बनाया है। मध्यम वर्ग को पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार द्वारा दी जा रही सब्सिडी भी नहीं दी गई है।
एक ओर केजरीवाल सरकार ने छोटे उपभोक्ताओं को सब्सिडी देकर बेवकूफ बनाया है और दूसरी ओर उसने बढ़े हुये पी.पी.सी.ए. चार्ज वसूलने की भी इजाजत दे दी है।
इसका परिणाम यह हुआ है कि सरकार की निजी भागीदार कंपनियां रिलायंस और टाटा को सरकारी खजाने से सब्सिडी का धन मिल रहा है और उसने दो वर्षों में पी.पी.सी.ए. के रूप में 10 हजार करोड़ रूपये भी वसूले हैं।
अब समय आ गया है कि अरविंद केजरीवाल सरकार बिजली कंपनियों के वित्तीय घोटालों पर एक श्वेत पत्र प्रस्तुत करें।