‘सामाजिक अशांति, हड़ताल और बंद’ भारतीय अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाले सबसे बड़े जोखिम ‘सूचना और साईबर असुरक्षा’ इस साल भी व्यवसाय के लिए दूसरे सबसे बड़ा खतरा ‘भ्रष्टाचार, रिश्वत और कारपोरेट धोखाधड़ी’ पांचवें स्थान पर।
नई दिल्ली 24 जून 2016(संवाददाता)- फिक्की ने आज अपना सालाना इंडियन रिस्क सर्वे 2016 (आईआरएस 2016) जारी कर दिया। यह व्यावसायिक प्रतिष्ठानों की रणनीति, संचालन और सुरक्षा खतरों के बारे में बिज़नेस लीडर्स, पॉलिसीमेकर्स, एक्सपर्ट्स के साथ ही अलग-अलग क्षेत्रों और हिस्सों के प्रोफेशनल्स के विचारों और धारणाओं को दिखाने का एक प्रयास है। सर्वे में देश के विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों के सभी उद्योगों को शामिल किया गया है।
सर्वे के नतीजे उदयोग जगत के विशेषज्ञों और सरकार में फैसले लेने वालों को खतरों के असर का विश्लेषण करने में मदद देते हैं। जिससे कि वह व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को होने वाले इन खतरों को रोकने, कम करने या इनके असर को नियंत्रित करने के लिए योजना बनाने व रणनीति लागू करने में इनका इस्तेमाल कर सकते हैं।
सर्वे 12 प्रमुख जोखिमों पर केंद्रित है जो पूरे देश के आर्थिक तंत्र के लिए कई खतरे पैदा करते हैं। सर्वे के नतीजों में एक रोचक बात यह निकल कर आई है कि खतरे की नई श्रेणियां शीर्ष पर पहुंच गई हैं, लेकिन शीर्ष पांच खतरे की श्रेणियों के बीच प्रतिशत के मामले में ज्यादा अंतर नहीं है।
इस साल सर्वे में उत्तरदाताओं के बहुमत ने 'हड़तालों, बंद और अशांति' को भारतीय अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाला प्रमुख खतरा माना है। जो पिछले साल के सर्वे के नतीजों पूरी तरह विपरीत है, जिसमें 'भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी और कारपोरेट धोखाधड़ी' सबसे बड़े खतरे के रूप में उभरे थे। कारपोरेट इंडिया के लिए खतरे का यह विशेष वर्ग गंभीर चिंता का विषय बना रहा, विशेष रुप से वह साल जिसने शिक्षा और सरकारी नौकरियों, आदि में आरक्षण की मांग के लिए (उदाहरण के लिए) जाट और पटेल आंदोलनों के रूप में प्रमुख असंतोष देखा है। बढ़ी सामाजिक अशांति के अतिरिक्त, श्रमिक अशांति, सुधारों, भूमि अधिग्रहण और औद्योगिक परियोजनाओं के खिलाफ हड़ताल और प्रदर्शन ने व्यापार को लेकर धारणा पर असर डाला। 2013 के सर्वे में शीर्ष पर ही श्रेणी, 2014 में दूसरे और 2015 में भी घटकर छठे स्थान पर पहुंच गई।
‘सूचना और साईबर असुरक्षा’ लगातार दूसरे साल भी भारत में व्यवसायों के लिए दूसरा सबसे बड़ा खतरा माना गया है। इस खतरे को ऊंची रेटिंग मिलने की वजह है उच्च-प्रौद्योगिकी संचालित वैश्विक अर्थव्यवस्था में निजी और सरकारी क्षेत्र दोनों पर खतरा लगातार बना रहता है जहां साइबर हैकिंग की घटनाएं बढ़ रही है। बौद्धिक संपदा और कार्पोरेट धोखाधड़ी के उल्लंघन के साथ-साथ सूचना असुरक्षा सभी सेक्टरों और भौगोलिक क्षेत्रों में व्यापार रणनीति की महत्वपूर्ण चिंता बने हुए हैं।
पिछले साल के इंडिया रिस्क सर्वे में 5वें स्थान की जगह 2016 में ‘अपराध’ तीसरे स्थान पर पहुंच गया है। राष्ट्रीय अपराध रेकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के 2014 के आंकड़ों में 2013 की तुलना में 8.9% की वृद्धि दिखाई गई थी। संख्या के हिसाब से 2013 में रजिस्टर्ड 66,40,378 केसों की तुलना में 2014 में एनसीआरबी ने 72,29,193 संज्ञेय अपराध रजिस्टर किए जिनमें 28,51,563 भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के अपराध थे जबकि 43,77,630 विशेष और स्थानीय कानूनों (एसएलएल) के तहत आने वाले अपराध थे। अपराध की ऊंची दर अकसर सामाजिक अशांति में वृद्धि से जुड़ी होती है जो हर तरह के अपराधियों के लिए अनुकूल परिस्थितियां बना देती हैं। साथ ही, भारत में महिलाओं के खिलाफ अपराध बढ़ रहे हैं जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर और व्यापक व्यापार समुदाय में भारत की छवि पर असर डालते हैं।
आतंकवाद और उग्रवाद' नंबर 3 पर अपनी पिछली रैंकिंग से एक स्थान गिरकर इस वर्ष चौथे नंबर पर आ गया है। आतंकी हमलों से होने वाली तबाही पूरे व्यापार के संचालन को आसानी से बाधित कर सकती हैं। एक बड़ा डर मध्य पूर्व में आतंकी गतिविधियों में इज़ाफा और इसका भारतीय उपमहाद्वीप तक विस्तार है। इसके साथ-साथ, असंतुष्ट युवाओं में बढ़ती कट्टरता देश के नीति निर्माताओं के लिए एक प्रमुख चिंता का विषय है। आतंकवाद के साथ-साथ वामपंथी छापामार समूहों, कथित नक्सलियों और भारत के विभिन्न भागों में अन्य जातीय विद्रोहों का उग्रवाद व्यापारिक प्रतिष्ठान और उनके संचालन के लिए प्रमुख खतरा हैं। विशेष रुप से नक्सलियों का खतरा आतंकवाद के ही समान है और इनकी खनिज संसाधनों से संपन्न राज्यों समेत कई राज्यों में मौजूदगी का नए व्यावसायिक प्रतिष्ठानों पर गंभीर प्रभाव पड़ता है।
वैश्विक भ्रष्टाचार और व्यापार में आसानी के सूचकांकों में भारत की रेटिंग में निरंतर सुधार से पिछले दो साल में ‘भ्रष्टाचार, रिश्वत और कारपोरेट धोखाधड़ी’ के खतरे की रैंकिंग में गिरावट आई है जो इंडिया रिस्क सर्वे में पहले स्थान से फिसलकर 5वें स्थान पर आ गया है।
करप्शन परसेप्शन इंडेक्स 2015 (सीपीआई) में भारत के निरंतर सुधार से भारत ने 76वें स्थान पर आकर अपनी स्थिति में सुधार किया है जो भूटान के बाद दक्षिण एशिया क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ है। यहां तक कि भारत ने एक अन्य प्रमुख एशियाई पड़ोसी देश से भी बेहतर प्रदर्शन किया जिसे इस सूची में 83वें स्थान पर रखा गया। विश्व बैंक के व्यापार सूचकांक में भारत ने 2014 में 134 के मुकाबले 2015 में चार स्थान ऊपर चढ़कर 130वें स्थान पर जगह बनाई है। इसी तरह, पाँच साल तक लगातार गिरावट के बाद विश्व आर्थिक मंच के (डब्ल्यूईएफ) वैश्विक प्रतिस्पर्धी सूचकांक 2015-16 में 16 स्थान का सुधार कर भारत ने 55वां स्थान हासिल किया है।
आईआरएस 2016 में 'राजनीति और शासन अस्थिरता' का खतरा’ छठे स्थान पर रहा है। इस साल इस खतरे की रैंकिंग सरकारी नीतियों, और उद्योग व व्यापार की मांग को बड़े आर्थिक सुधारों के एक ही पैकेज में शामिल करने की ओर इशारा करती है जो वर्तमान में भारत में चल रहे हैं। हाल के नीतिगत बदलाव जैसे कि प्रस्तावित गुड्स एंड सर्विस टैक्स और मल्टीब्रांड रिटेल आदि में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश देश में व्यापार के लिए एक सकारात्मक माहौल बनाएंगे 'राजनीतिक और शासन अस्थिरता' के जोखिम को कम करने में मदद देंगे। एक अन्य चिंता का विषय कई बहुराष्ट्रीय निगमों से रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स की मांग है जिसको लेकर विभिन्न उद्योग संगठनों ने आवाज़ उठाई है। वर्तमान सरकार की सुधार समर्थक नीतियां हालांकि दीर्घकालिक विश्वास पैदा करने और इसके बदले आर्थिक विकास को बढ़ावा देने में मददगार साबित होंगी।
ऊपर दिए गए आंकड़े दिखाते हैं कि शीर्ष पाँच खतरे जिन्होंने इस साल भारत के कारोबारी माहौल पर असर डाला उनमें, ‘हड़ताल, बंद और अशांति’, ‘सूचना और साईबर असुरक्षा’, ‘अपराध और उग्रवाद’, और ‘भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी और कारपोरेट धोखाधड़ी’ शामिल हैं। 2014 और 2015 के सर्वे के नतीजों में पहला स्थान लेने वाले ‘भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी और कारपोरेट धोखाधड़ी’ इस साल पांचवें स्थान पर खिसक चुके हैं। ‘हड़ताल, बंद और अशांति’ में इजाफे के लिए निर्माण क्षेत्र में श्रमिक अशांति की लगातार धमकी के साथ-साथ पिछले कुछ महीनों में शिक्षा और सरकारी नौकरियों आदि में आरक्षण की मांग को लेकर जाट और पटेल समुदाय (उदाहरण के लिए) के आंदोलन को इस अशांति के लिए जिम्मेदार माना जा सकता है, पिछले कुछ महीनों में 'सूचना एवं साईबर असुरक्षा' इस साल के सर्वे में भी दूसरी स्थान पर कायम है।