राफेल डील पर कांग्रेस ने किया हमलावर रूख अख्तियार।
Delhi: Tue, 04 Sep 2018 01:26, by: Neeraj Kumar

राफेल विमान सौदे को लेकर कांग्रेस ने मोदी सरकार के खिलाफ शुरूआती दौर से हल्ला बोल रखा है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अब बहुत ही जोरदार हमलावर रूख अख्तियार कर चुके है। इस डील में पीएम मोदी पर घपले करने का आरोप लगाया जा रहा है। उन्हे महसुस हो चुकि है कि यहाँ पर राजनीतिक लाभ की भरपूर संभावना है, जिसे भुनाने मे कांग्रेस संसद से लेकर जनता के बिच तक किसी तरह कि कोर कसर छोड़ने को तौयार नही दिख रही है।

अच्छी बात है इतनी बडी़ राफेल डील हो चुकि है देश के साथ जिसका नफा नुकसान तो सामने आनी ही चाहिए। कांग्र्रेस इसके लिए आए दिन अपने किसी नेता को सरकार को घेरने के लिए उतार रही है। कांग्रेस मोदी सरकार के साथ-साथ उद्योगपति अनिल अंबानी पर भी अपने हमले तेज कर रही है। जहां अनिल अंबानी कांग्रेस को जवाब देने के लिए लगातार कानूनी दांव पेंच के सहारे नोटिस भेजने में लगे हुए हैं।

आखिर ये राफेल डील है क्या? क्या वजह है कि भाजपा सरकार के द्वारा किया गया रक्षा डील शुरूआती दौर से संदेह के घेरे मे है? विपक्ष के साथ अटलजी के मंत्रीपरिषद के सदस्य रहे यशवंत सिन्हा व अरूण शौरी, वकील प्रशांत भूषण जैसे लोग इन सौंदा पर सवालिया निशान लगा रहे है? क्या वजह है कि भाजपा सरकार इन आरोपों पर माकूल जवाब देने से कतरा रही है? सवालों की लिस्ट बड़ी है और जवाबों का पता नही इसलिए हम चलते है सीधा राफेल डील पर जहाँ इनकी बारीकियों के साथ हमे इसके तह तक जाने का रास्ता साफ हो सके। 

2007 मे भारतीय वायुसेना ने सरकार के समक्ष एयरक्राफट की जरूरते बताई, जिसके आधार पर यूपीए सरकार ने रिक्वेस्ट ऑफ प्रपोजल तैयार कर 126 मीडियम मल्टी रोल कंबैट एयरक्राफट खरीदने का फौसला लिया। सरकार ने खरीद के लिए अपनी पैमाने तय किये जिसके लिए टेंडर प्रक्र्रिया का पालन किया जाएगा तथा एयरक्राफट कंपनी की तरफ से शुरूआती कीमतें, टेक्नोलॉजी का हस्तांतरण, भारत मे निर्माण की अनुमति भी शामिल किया गया था।

सरकार के द्वारा टेंडर जारी किया जाता है, एयरक्राफट बनाने वाली 6 कंपनिया इनमे हिस्सा लेती है। भारतीय वायु सेना अपनी जरूरत के अनुकूल परीक्षण करती है। इसके उपरांत दो एयरक्राफट पसंद किये, डसाल्ट एविएशन कंपनी की राफेल और यूरोफाइटर का विमान। 2012 में डसाल्ट एविएशन ने भारतीय सरकार के मापदंड के अनुसार सही उतरती है। छह फाइटर जेट्स के बीच राफेल को इसलिए चुना गया क्योंकि राफेल की कीमत बाकी जेट्स की तुलना में काफी कम थी। इसके अलावा इसका रख-रखाव भी काफी सस्ता था, जिसके कारण सरकार कि बातें इस कंपनी के साथ आगे बढती है। यूपीए सरकार के दौरान इस पर समझौता नहीं हो पाई, क्योंकि टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के मामले में दोनों पक्षों में गतिरोध बन गई थी।  

साल 2014 में जब नरेंद्र मोदी सरकार बनी तो उसने इस दिशा में फिर से प्रयास शुरू किया। पीएम की फ्रांस यात्रा के दौरान साल 2015 में भारत और फ्रांस के बीच इस विमान की खरीद को लेकर समझौता किया गया। इस समझौते में भारत ने जल्द से जल्द 36 राफेल विमान उड़ान के लिए तैयार विमान हासिल करने की बात कहीं। उधर भाजपा सरकार ने दावा ठोक रखी है कि हमारी सरकार ने यह डील पिछली सरकार से ज्यादा किफायति किया हैं। क्योकि इस सौदे मे हमने आज के दौर के हिसाब से काफी उन्नत फाइटर प्लेन लिया है वो भी कम कीमतों पर। वही यूपीए सरकार का दावा है कि हमने 126 विमानों के लिए 54,000 करोड़ रुपये मे डील कर रही थी, जबकि मोदी सरकार सिर्फ 36 विमानों के लिए 59,000 करोड़ दे रही है। कांग्रेस का आरोप है कि एक प्लेन की कीमत 1640 करोड़ रुपये हैं, जबकि कांग्रेस 540 करोड़ रुपये में खरीद रही थी।


कांग्रेस का कहना है कि बीजेपी सरकार के इस सौदे मे किसी एक कंपनी को विशेष लाभ पहुंचाने की षडयंत्र साफ दिख रही है। आलोचकों का कहना है कि यूपीए के सौदे में विमानों को भारत में असेंबल में सार्वजनिक कंपनी हिंदुस्तान एयरक्राफ्ट लिमिटेड को शामिल करने की बात थी। भारत में यही एक कंपनी है जो सैन्य विमान बनाती है। लेकिन एनडीए के सौदे में एचएएल को बाहर कर इस एक निजी कंपनी को सौंपने की बात कही गई है। किसी भरोसेमंद सरकारी कंपनी की जगह अनाड़ी नई निजी कंपनी को शामिल करना कैसे उचित हो सकता है। यानी विरोधियों के मुताबिक एनडीए सरकार एक निजी कंपनी को फायदा पहुंचा रही है। 

कंाग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी तो अब खुलकर रिलायंस डिफेंस का विरोध कर रहे है। वैसे रिलायंस डिफेंस नामक कंपनी का गठन राफेल डील होने से कुछ दिनों पूर्व ही हुआ था। यह भारत कि एक नवर्निमित निजी कंपनी है जिसे पहली बार फाइटर प्लेन बनाने का इटना बडा़ टेंडर भारत सरकार के द्वारा दिया गया है। जो वास्तविक मे मोदी सरकार की मंशा पर संदेह उत्पन्न करती है। वही इसके मुखिया अनील अंबानी 5000 करोड़ रूपये की मानहानी मुकदमा कांग्रेस पर दायर करने का नोटिस दे चुके है। 

राफेल सौदे पर एक ओर जहां सरकार को सक्रियता दिखाने की जरूरत है, वहीं विपक्ष और खासकर कांग्रेस को भी यह स्पष्ट करने की जरूरत है कि अगर मनमोहन सरकार के समय नाभिकीय हमले में सक्षम एक राफेल विमान की कीमत वास्तव में 540 करोड़ रुपए थी, तो फिर उसने यह सौदा किया क्यों नहीं?

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